Saturday, October 31, 2015

शे’र कहता शेर सा हुंकार कर

आज तू तीरे नज़र का वार कर
नीमकश बिल्कुल न, दिल के पार कर

रस्मे उल्फ़त तो निभा जालिम ज़रा
कुछ सितम दिल पर मेरे दिलदार कर

आज जीने का हुनर है सीखना
ज़िन्दगी से जीत कर या हार कर

अब शराबे लब नहीं अब ज़ह्र दे
मुझपे इतना सा करम तू यार कर

नफ़्रतों से ख़ुश है तो जी भर करे
मैं कहाँ कहता हूँ मुझको प्यार कर

है यही ग़ाफ़िल का अंदाज़े बयाँ
शे’र कहता शेर सा हुंकार कर

-‘ग़ाफ़िल’

6 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, डे लाईट सेविंग - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत सुंदर

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  3. शानदार रचना। अच्‍छी रचना प्रस्‍तुत करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।

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  4. सुन्दर प्रस्तुति , बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत बधाई आपको .

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