Monday, November 09, 2015

याद तेरी है तो दीवाली है

फ़र्क़ क्या है के रात काली है
याद तेरी है तो दीवाली है

मद भरे चश्म का तसव्वुर कर
मैंने भी तिश्नगी मिटा ली है

पा मेरे तब ही लड़खड़ाए हैं
जब भी तूने निगाह डाली है

रू-ब-रू है मेरा दिले नादाँ
और तेरी नज़र दुनाली है

अक्स तेरा उभर रहा हर सू
शायद अब नींद आने वाली है

आईने पर नज़र न कर ग़ाफ़िल
क्यूँकि तेरी नज़र सवाली है

-‘ग़ाफ़िल’

2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, तीन साधू - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. रू-ब-रू है मेरा दिले नादाँ
    और तेरी नज़र दुनाली है
    वाह, बहत खूब।

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