Thursday, September 15, 2016

या तो इस पार की या तो उस पार की

अब तलक जो हुई सब थी बेकार की
चाहिए बात हो अब ज़रा प्यार की

खिलके गुंचे भी तो हो गए फूल सब
ख़ूबसूरत घड़ी है ये इज़हार की

गर सुनाने लगा मैं कभी हाले दिल
बात चल जाएगी तुझसे तकरार की

हुस्न के तो क़सीदे पढ़े जा रहे
याद जाती रही इश्क़ के मार की

आह! रुस्वाइयाँ हो रहीं बारहा
उस मुहब्बत की जो मैंने इक बार की

जो भी होना है ग़ाफ़िल जी हो जाए अब
या तो इस पार की या तो उस पार की

-‘ग़ाफ़िल’

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