Monday, July 27, 2015

आग भड़के के तभी आग बुझा दी किसने

ग़ज़ल-

2122 1122 1122 22 (112)

फ़ाइलातुन  फ़ियलातुन  फ़ियलातुन  फ़ैलुन (फ़अलुन)

क़ाफ़िया- आ
रदीफ़-  दी किसने
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इश्क़ है आग का दरिया की मुनादी किसने
आग भड़के के तभी आग बुझा दी किसने

है पता आग की लज़्ज़त का मुझे पहले से
या ख़ुदा इश्क़ में जाने की सज़ा दी किसने

एक यह बात के मुझ पर न यक़ीं था उसको
और भी मेरे तईं आग लगा दी किसने

उड़ रहे अब्र तो है जी भी परीशाँ यह के
ज़ुल्फ़ महबूब की इस मिस्ल उड़ा दी किसने

इश्क़बाज़ी का सफ़र ख़ूब था जारी लेकिन
अब रहे इश्क़ में भी कील बिछा दी किसने

होंठ सूखे थे तलब थी तो फ़क़त पानी की
आबे अह्‌मर ही मुझे लब की पिला दी किसने

आबे अह्‌मर=ख़ास लाल शराब

-‘ग़ाफ़िल’

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