Monday, August 10, 2015

देखिए हम रिंद फिर पीने पिलाने आ गये

2122 2122 2122 212

हुस्न वाले अक़्ल फिर अपनी लगाने आ गये
इश्क़ को बच्चा सरीखे बरगलाने आ गये

हो गयी है शाम अब शेरो सुखन की यह शराब
देखिए हम रिंद फिर पीने पिलाने आ गये

इश्क़ की आँधी चली तो हुस्न के हर पेचो ख़म
क्या बताएँ यार ख़ुद कैसे ठिकाने आ गये

भूल करके देर तक हम रह सकें, मुमकिन नहीं
आपकी यादों के मेले फिर बुलाने आ गये

इश्क़ की बेताबियाँ कुछ इस क़दर तारी हुईं
कौन भेजे ख़त उन्हें हम ख़ुद बताने आ गये

कौन सुनता है यहाँ अपने में हैं मश्ग़ूल सब
अब न जाने क्यूँ लगे हम क्यूँ सुनाने आ गये

इश्क़ में बेआबरू होने का मतलब कुछ नहीं
हम फ़क़त अपनी वफ़ाएँ आज़माने आ गये

हुस्न वालों के ये नख़रे औ नज़ाक़त बाप रे!
फिर भी देखो हम-से ग़ाफ़िल सर ख़पाने आ गये

-‘ग़ाफ़िल’

No comments:

Post a Comment