उसे कैसे समझूँ के बहका नहीं है
जो ख़ुद को है कहता के क्या क्या नहीं है
अरे यार पालिश पे पालिश पे पालिश
लगे है के आशिक़ तू सच्चा नहीं है
नहीं आने की क़स्म का हो असर क्यूँ
तेरा वैसे भी आना जाना नहीं है
किया इश्क़ कैसा जो दावा है करता
के दिल अब तलक तेरा टूटा नहीं है
है गरजा तू बरसेगा भी मान लूुँ पर
ज़माने में ऐसा तो होता नहीं है
तू हो चाँद जिसका भी मेरी बला से
मेरे तो ज़बीं का सितारा नहीं है
ज़ुदा और से इसलिए तू है ग़ाफ़िल
के कू-ए-मुहब्बत में रुस्वा नहीं है
-‘ग़ाफ़िल’
जो ख़ुद को है कहता के क्या क्या नहीं है
अरे यार पालिश पे पालिश पे पालिश
लगे है के आशिक़ तू सच्चा नहीं है
नहीं आने की क़स्म का हो असर क्यूँ
तेरा वैसे भी आना जाना नहीं है
किया इश्क़ कैसा जो दावा है करता
के दिल अब तलक तेरा टूटा नहीं है
है गरजा तू बरसेगा भी मान लूुँ पर
ज़माने में ऐसा तो होता नहीं है
तू हो चाँद जिसका भी मेरी बला से
मेरे तो ज़बीं का सितारा नहीं है
ज़ुदा और से इसलिए तू है ग़ाफ़िल
के कू-ए-मुहब्बत में रुस्वा नहीं है
-‘ग़ाफ़िल’
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